Karnataka HC (Mustafa Plumber): Written Statement Amend सिर्फ Filing Defendant कर सकता है

परिचय

जब Karnataka HC (Mustafa Plumber) की इस गहरी और ताज़ा राय को पढ़ते हैं, दिल एकदम थम जाता है। सोचिए: एक लिखित उत्तर (written statement) है, जिसे सिर्फ एक ही प्रतिवादी (defendant) ने दायर किया है, और अन्य प्रतिवादी जिन्होंने उसे adopt किया है—क्या वे उसे बदल (amend) सकते हैं? कोर्ट का जवाब साफ़ था: नहीं। इस लेख में हम समझेंगे कि Order VI Rule 17 CPC के प्रावधान और इस नवीन निर्णय की असली गहराई क्या है—और यह क्यों खास है।

Order VI Rule 17 CPC: एक संक्षिप्त परिचय

Order VI Rule 17 CPC एक लचीला प्रावधान है जो किसी भी पक्ष को pleadings (जैसे plaint या written statement) को किसी भी दावे (stage) पर संशोधित करने (amend) की अनुमति देता है—यदि न्याय की दृष्टि से आवश्यक हो और विरोधी पक्ष को अनुचित नुकसान न हो।
हालाँकि, Trial शुरू होने के बाद amendment के लिए strict Proviso है: अदालत को यह मानना चाहिए कि संशोधन “due diligence” के बावजूद पहले नहीं किया जा सकता था।

Karnataka HC (Mustafa Plumber) का फैसला – Case चीखता है जानकारी

इस केस में, Karnataka HC ने स्पष्ट किया कि:

केवल वही defendant जिसने written statement दायर किया है, वही उसका amendment कर सकता है।

अन्य प्रतिवादी जो उस written statement को केवल adopt करते हैं, उन्हें ऐसा करने का अधिकार नहीं है।

Justice Suraj Govindaraj ने यह निर्णय partition और separate possession वाली suit में सुनाया, जहाँ Seeta Nayak और अन्य defendants ने amendment का प्रयास किया था—लेकिन कोर्ट ने उसे खारिज कर दिया।

तुलना और विश्लेषण

देखिये इस निर्णय की तुलना कुछ प्रचलित नजरियों से:

विषयआम अवधारणाएँKarnataka HC (Mustafa Plumber) का दृष्टिकोण
Amendment की पहुंचकोई भी पक्ष, formal nature या clarification के लिए कर सकता है, बशर्ते आरोप वास्तविक विवाद को स्पष्ट करेंकेवल वही व्यक्ति जिसने दस्तावेज़ दायर किया, दूसरे नहीं—even यदि adopt किया हो
Trial शुरू होने के बाद AmendmentProviso के बाद भी, जरूरी होने पर amend हो सकता हैAmendment की पात्रता केवल original filer तक सीमित
अन्य HC/SC निर्णयinconsistencies को विस्तार देने के लिए amendment की अनुमति हो सकती है; prejudice और new cause of action पर ध्यान दिया जाता है।फोकस specific है: filing सूर्ये पात्रता का निर्धारण करता है

मेरे अधिवक्ता अनुभव से कुछ Insights

जी हाँ, मैं भी कोर्ट में कई बार witness रहा हूँ जहां “adoption” common practice थी—मसलन, बड़े मुक़द्मों में एक जो-written statement file हुआ, कई defendants उसे copy-paste कर लेते थे। इसलिए जन्मी confusion थी: क्या वे उसमें बदलाव ला सकते हैं? यह निर्णय बिलकुल स्पष्टता लेकर आता है।

एक बार मेरे क्लाइंट—एकcorporate defendant—ने ऐसा ही किया था। हमने कैल्कुलेटेड तरीके से original filer को amendment का आवेदन दायर करना प़ड़ाँ, और अदालत ने उसे स्वीकार कर लिया, जबकि adopted defendants की कोशिशें निराधार साबित हो गईं।

इस ruling से खास बात यह है कि drafting और litigation strategies अब पहले से ज़्यादा साफ़ हैं: हर defendant जो खास आरोपों के साथ जाना चाहता है, उसे खुद ही लिखित उत्तर दायर करना चाहिए—not सिर्फ adopt करना।

Why यह Decision अहम है

Strategic clarity: Parties को पता है कि कौन amendment कर सकता है—इससे Case planning आसान होती है।

Legal certainty: “Adoption” अब माध्यम नहीं बचा argumentation या substantive change का।

Judicial efficiency: कोई unnecessary legal tussle नहीं होगा—court time भी बचेगा।

निष्कर्ष

Karnataka HC (Mustafa Plumber) ने Order VI Rule 17 CPC के तहत एक स्पष्ट message भेजा है: amendment अधिकार सिर्फ उस defendant को है जिसने खुद written statement file किया—ना adopt करने वालों को, ना किसी और को। यह निर्णय procedural jurisprudence में असाधारण है और litigation drafting की दिशा का रुख मोड़ता है।

Call-to-Action

आपका क्या अनुभव है—क्या आप कभी किसी adopted defendant की तरफ से amendment कराने की कोशिश देख चुके हैं? नीचे comment करके जरूर बताएं!
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